Friday, June 7, 2024

महातिक्तक घृत

                                                         महातिक्तक घृत (चरक चिकित्सा 07) 
 सप्तच्छदं प्रतिविषां शम्पार्क तिक्तरोहिणीं पाठम्। मुस्तमुशीरं त्रिफला पटोल पिचुमर्द पर्पटकम्॥
 धन्वयवासं चंदनमुपकुल्यं पद्मकेन हरिद्वे द्वे। षड्ग्रंथं सविषालाशतावरीं सारिवे चोभे॥ 
 वत्सकबीजं योसं मुरवामृतां किरात्तिक्तं च। कालकं कुर्यानमतिमन्यस्त्याह्न त्रायमाणा च॥ 
 कालकवतुर्भागो जलमष्टगुणं रसोऽमृतफलानाम्। द्विगुणो घृतत्प्रदेयस्तत्सर्पिः पाययेत्सिद्धम् ॥ 
 कुष्ठानि रक्तपित्तप्रबलन्यार्षसि रक्तदाहिनि। विसर्पमम्लपित्तं वातासृक् पाण्डुरोगं च 
विस्फोटकानास्पमानुन्मादं कामलां ज्वरं कण्डूम्। हृद्रोगग्लमपीडका असृग्दद्रं गण्डमालां च 
 इन्यादेतत् सर्पिः पीतं काले यथाबलं सद्यः। योगशतैरप्यजितानमहाविकरणमहतिक्तम् ॥ 
                                                                        इति महतिक्तकं घृतम्। (१४४-१५०) 
महातिक्तक घृत - छत्तीवन को छाल, अतीस, अमलतास की पत्ती या छाल, कुटकी, पाठा, नागामोथा, खश, आँवला, इरड़, बहेड़ा, परवल को पत्ती, नीम को छाल, पित्तपापिड़ा, धमासा, लालचंदन, पीपर, पद्मकाठ, इल्दी, दारुहल्दी , बच, इंद्रायण का फल, शतावर, अनंतमूल, कपूरी, इंद्रयव, यवासा, मुरवा, गुडुची, चिरायता, मुलेठी, त्रायमाण इन प्रत्येक द्रव्यों का कल्क निर्माण कर।वे और गोघृत कल्क से चतुर्गुण, गोघृत से जल अष्टगुण और घृत से द्विगुण आँवले का स्वरस, विधि घृत का पाक सिद्ध करे। जब घृत का पाक हो जाए तो छान कर घृत को रख ले। प्रातः सायंकाल में इस घृत के सेवन से कुष्ठ, रक्तपित्तप्रवल रक्त का प्रवाहण करने वाले अर्श, विसर्प, अम्लपित्त, बातरक्त, पाण्डुरोग, विस्फोट, पामा, उन्माद, कामला, कण्डू, हृदयरोग, गुल्म, पिडिका, रक्त प्रदर, गण्डमाला, इन रोगों को समय समय पर बल के अनुसार सेवन किया गया यह घृत नष्ट करता है। अन्य सेकड़ों ओषधियों के प्रयोग से जो महारोग अच्छे नहीं होते हैं, उन रोगों को यह महातिक्तधृत शीघ्र नष्ट कर देता है।॥

No comments:

Post a Comment

महातिक्तक घृत

                                                          महातिक्तक घृत (चरक चिकित्सा 07)   सप्तच्छदं प्रतिविषां शम्पार्क तिक्तरोहिणीं पाठम्...

popular posts